” एक था कोरोना ”
आज जब हमलोग कोरोना रूपी संकट से जुझ रहे हैं , तो कुछ अच्छी खबरें भी आती है प्रदूषण को लेके ! जो मन को काफी हद तक संतोष दे जाती है! इंसान समझता क्या है अपने आप को उसकी अौकत ही क्या है प्रकृति के सामने , कभी कभी तो लगता है ये कोरोना कुछ है ही नही , सिर्फ और सिर्फ प्रकृति के द्वार ख़रा किया गया कोहराम है , पूरे मानव समाज को कैद कर देने का शॅखनाद है ये ! ताकी प्रकृति अपने आप को balance कर सके !
पहले ये ज़िम्मेवारी हमलोगों को दी गयी थी , हमलोग पूरी तरह से नकाम रहे, हमलोगों ने क्या किया सिर्फ और सिर्फ दोषारोपन !
इसके सिवा जैसे हमलोग कुछ जानते भी नही .
अभी एक उदाहरण दिल्ली का ही ले लिजिये , दिल्ली के मामले में हमलोगों ने क्या किया , दिल्ली के प्रदूषण की चर्चा पूरे विश्व में फैल चुकी थी ! और हमलोग इसके लिये बेचारे किसानों को ज़िम्मेदार बता रहे थे ! किसान वो तो जन्मजात बेचारा होता है अपने खेत को साफ करने के दरम्य़ान कुछ बचे हुए पौधों के अवशेश (पराली ) को ज़लाता है तो बुद्धीज़िवी वर्ग उसे ही कठघरे में ख़रा कर देती है.. लेकिन इस बार प्रकृति कहाँ मानने वाली थी , इस बार तो लगता है प्रकृति भी आरपर के मूड में है
तभी तो दूध का दूध पानी का पानी कर दी दिल्ली के मामले में !
यहाँ यह कहावत विलकुल फिट बैठती है “खेत खाये गधा मार खाये जोलहा ” पूरे सरकारी तंत्र प्रदूषण को लेके अपना सर पिट रही थी , पर कुछ ना कर सकी . तब प्रकृति आती है और खुद मोर्चा संभालती है . और आज देखिये आज प्रदूषण का स्तर कहाँ गया . प्रकृति तो balance करेगी .. पहले ये काम हमलोगों को दिया गया था पर हमलोग अपने आप को ही बॉस समझने लगे ..किसी को छोरा ही नही हमलोगों ने , सबको कैद कर दिया हमने !
आज सुबह की ही तो बात है , आज चिरियों की चहचाहट से निंद खूली , अक्सर निंद खुलने पर चिरचिरापन होता है.. लेकिन चिरियों को सुनके मज़ा आ गया ! अपनी आजादी का जस्न मना रही थी , जैसे इंसान को चीढा रही हो ! ये प्रकृति है साहब सबका हिसाब करेगी ! अभी भी हमलोग नही सुधरे तो सुद समेत वसुलेगी !
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किसी को छोरे ही नही हमलोग जैसे हमलोग भूल ही गए ये धरा सबकी है, पेड़ों की , चिरियों की , पक्षियों की, जानवरों की , पहाड़ों की, नदियों की , हवाओं की हवा को कैसे भूल सकते है हमलोग सबसे ज्य़ादा सत्यानाश तो इसी का किया है हमलोगों ने ! सबकी है ये वशुन्धरा ..
अब प्रकृति की बारी है , हम लोग तो प्रकृति को भूल ही गए थे (science) जो था अपने पास पर अब वही science घर दूबक के बैठ गयी , य़ा ये कहें बैठने पे मजबूर कर दिया गया !
इसलिये ये बात हमलोगों को याद रखनी चाहिए प्रकृति के साथ माजाक नही ,नही तो हमलोग मजाक बनके रह जायेंगे !
शायद ये कहने वाले भी ना रहें की “एक था कोरोना “
धन्यवाद !
ऋषिकेश कुमार ,वार्ड न.11 ,मोलदियार टोला, मोकामा ,
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