मोदी के Sukhet Model का मोकामा में होगा क्रियान्वयन।
नई दिल्ली। बिहार। समस्तीपुर। पटना। मोकामा। (Sukhet Model)पिछले रविवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मन की बात में अपनी बात रखी थी ।जिसमें उन्होंने डॉ राजेंद्र प्रसाद कृषि विश्वविद्यालय के सूखेत मॉडल की सराहना की थी। प्रधानमंत्री मोदी से सराहना पाकर राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक खुशी से गदगद हैं। खुशी के इस अवसर पर विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ आर सी श्रीवास्तव समेत योजना से जुड़े सभी वैज्ञानिकों को विश्वविद्यालय के विद्यापति सभागार में सम्मानित किया गया। इस टीम में डॉ संजय झा, डॉ सर्वेश कुमार, डॉक्टर सुधीर दास, डॉक्टर एसएस प्रसाद, डॉक्टर एस पी सिंह, डॉक्टर एसी मन्ना ,डॉ रत्नेश कुमार झा सहित कई वैज्ञानिकों को सम्मानित किया गया।
श्रीवास्तव को फादर ऑफ सुखेत मॉडल की उपाधि देने की मांग उठी ।
वैज्ञानिक डॉ मीरा सिंह ने विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ आर सी श्रीवास्तव को फादर ऑफ सुखेत मॉडल(Sukhet Model) की उपाधि देने की मांग तक कर डाली। उन्होंने सुखेत मॉडल की चर्चा मन की बात में करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आभार व्यक्त किया। उन्होंने बताया विश्वविद्यालय सुखेत मॉडल को बिहार सहित अन्य राज्यों में शुरू करने की योजना पर काम कर रही है।
सूखेत मॉडल की शुरुआत सुपौल और मोकामा से जल्द शुरू होगी ।
विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने बताया कि सूखेत मॉडल (Sukhet Model) की शुरुआत सुपौल और मोकामा से जल्द ही आरंभ हो जाएगी और उसके बाद देश के कोने-कोने तक सुखेत मॉडल को क्रियान्वित किया जाएगा।
कचरे से कमाई योजना का ही नाम है सूखेत मॉडल ।
क्या है सुखेत मॉडल जिसकी चर्चा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले रविवार को अपने मन की बात कार्यक्रम में की थी। सुखेत मॉडल (Sukhet Model) से गांव के ग्रामीणों को कचरे के बदले न सिर्फ घरेलू गैस मुफ्त मिल रही है बल्कि बारी-बारी से जैविक खाद की जरूरतें भी आसानी से पूरी हो जाती है।यह सब संभव हो पा रहा है कचरे से कमाई योजना के तहत। राजेंद्र प्रसाद कृषि विश्वविद्यालय पूसा के कुलपति डॉ रमेश चंद्र श्रीवास्तव ने कचरे से कमाई योजना का आगाज करते हुए सुकेत की एक बेहतरीन सौगात दी है।
कचरे के बदले मिलता है घरेलू रसोई गैस ।
उन्होंने बताया कि इस योजना के तहत हर घर में गीला और सूखा कचरा अलग अलग रखने के लिए हरा और नारंगी रंग का डस्टबिन उपलब्ध कराया जाता है। जिससे कचरा जमा होने के बाद विश्वविद्यालय की ओर से घर-घर जाकर कचरे का उठाव कराया जाता है । उसमें वर्मी कंपोस्ट बनाकर उसकी बिक्री की जाती है इस योजना के तहत गांव के ही 15 से 30 लोगों को रोजगार भी मिल जाता है और साथ ही साथ ग्रामीणों को कचरे के बदले 2 महीने पर एक गैस का सिलेंडर दिया जाता है खास बात यह कि सिलिंडर पर मिलने वाली सब्सिडी भी ग्रामीणों के खाते में ही जाएगी ।स्वास्थ्य की दृष्टिकोण से भी यह योजना बेहद ही फायदेमंद है क्योंकि इससे कचरा का समस्या तो दूर होगा ही साफ-सफाई बनी रहेगी। इसके अतिरिक्त मुफ्त में घरेलू गैस पर खाना बनाने से गांव की महिलाओं को धुएँ और प्रदूषण से भी निजात मिलेगा। उनका स्वास्थ्य अच्छा होगा जब स्वास्थ्य अच्छा होगा तो देश की तरक्की होगी।(Sukhet Model)
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