पृथ्वी पुत्र हैं शिवनार के धनिया जी

धरा को सुंदर और हरा भरा बनाने के लिए अपने जीवन को समर्आपित करने वाले धनिया जी की कहानी अपने आप में अद्वितीय है.शिवनार के धनिया जी को लोग प्यार से धनिया दा कहते हैं .इनकी मातृभूमि तो तेउस(बरबीघा) है परंतु इनका कर्मभूमि शिवनार है. सन 1952-55 से ही यह शिवनार में रह रहे हैं . धनिया जी अपने घर के इकलौते बेटे थे ,बचपन से ही इनको वृक्ष (गाछ) से बहुत लगाव था. खेत जाना, नये नये औषधीय पेङ पौधे की खोज करना इनकी दिनचर्या थी . जब इनकी शादी की उम्र हुई तो घरवाले शादी के लिए दबाब बनाने लगे.पर अपनी फकीरी अंदाज़ में इन्इहोने सबको मना कर दिया .

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Mokama ,मोकामा

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शादी करने में इनकी कोई रूचि नहीं थी इसलिए ये ननिहाल (शिवनार) आ गये.तबसे लेकर धनिया जी यंही के होकर रह गये . ये अपने पुरे जीवनकाल में हजारों पेङ लगा चुके हैं. मोकामा ऑनलाइन से बातचीत के क्रम में इन्होने कहा कि मैं जितना औषधि के बारे में जानता हूँ यदि बाबा रामदेव जैसे पेशेवर होता तो मैं भी बहुत आगे निकल गया होता. धनिया जी 1960 से ही लोगों को गिलोय का सेवन करने के लिए सलाह दे रहे हैं.आज कोरोना काल में गिलोय एक दवाई बन गई है. 86 वसंत पार कर चुके हैं धनिया दा परंतु इनकी यादाश्त और पेङ पौधों के बारे में जानकारी सुनेंगे तो आश्चर्य में पड़ जाएंगे. ये अपना सारा जीवन पर्यावरण को समर्पित कर चुके हैं. इन्होने ने अपने जीवन काल में कभी भी अंग्रेज़ी दवाई का प्रयोग नहीं किया . इन्होने पर्यावरण को ही अपना जीवन संगनी समझकर एक बेटा (इकलौता) होते हुए भी ताजन्म कुंवारे हैं .आज भी रोजाना पेड़ पौधे की देखभाल खुद करते हैं.

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