ऑनलाइन एजुकेशन में बिहार 0, अन्य राज्यों के 38 को मिली मान्यता

बिहार|पटना|कभी नालंदा और विक्रमशिला विश्व विद्यालय हमारी गौरव गाथा की कहानी कहा करती थी.हमारी शैक्षणिक और सांस्कृतिक संस्थान हमारी समृद्धि का प्रतीक हुआ करते थे.जिस बिहार की शिक्षा और शिक्षण संस्थानों की तूती पूरी दुनिया में बोलती थी,आज शर्मशार है बिहार .आज बिहार की शिक्षा व्यवस्था चरमरा गई है.सरकार और अधिकारी चाहे जितनी तारीफ कर लें राज्य की शिक्षा व्यवस्था कैसी है, यह जगज़ाहिर है.सरकारी शिक्षण संस्थान बारात घर और सामुदायिक भवन बन कर रह गए हैं.इस बात से शायद ही कोई इंकार करे कि देश आजाद होने के 70 सालों के बाद भी बिहार की शिक्षा व्यवस्था अन्य राज्यों के मुकाबले सबसे निचले पायदान पर है.राज्य के 50 % से जयादा शिक्षक अयोग्य हैं जबकि 28 % शिक्षक अनुपस्तिथ ही रहते हैं.अंग्रेजी अखबार  टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट की माने तो बिहार में सेकंडरी स्तर पर 45% शिक्षक पेशेवर तौर पर अयोग्य हैं. हायर सेकंडरी लेवल पर 60% शिक्षक RTE के मनकों पर बिलकुल खरे नहीं उतरते हैं.

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देशभर से यूजीसी ने 38 उच्च शिक्षा के संस्थानों को फुलफ्लेज ऑनलाइन कोर्स चलाने की मंजूरी प्रदान की है. 2020 में ही यूजीसी ने देश के अलग-अलग संस्थानों से ऑनलाइन आवेदन मंगाए थे. इसके बाद सभी संस्थानों के आवेदन और उनमें मौजूद सुविधाओं के आधार पर यह मंजूरी दी है.देश के चुने हुए सभी 38 संस्थानों को यह छूट है कि वे ऑनलाइन मोड में कोई भी कोर्स बिना यूजीसी के अप्रूवल के शुरू कर सकते हैं जबकि अन्य संस्थानों को इसकी शुरुआत के लिए यूजीसी से अप्रूवल लेना ही होगा. 38 में से बिहार का एक भी संस्थान चयनित नहीं हो पाया ,यह बिहार के लिए दुर्भाग्य का विषय है.शिक्षा व्यवस्था को सुधारने के लिए सरकारे बड़ी बड़ी योजनायें लाती है.अधिकारी गण उसे जमीन पर उतरने के लिए दिन रात अपना पसीना भी बहाते हैं मगर परिणाम ढाक के तीन पात.

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