मुफलिसी की जिंदगी काट रहे मगही कवि बालेश्वर

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मुफलिसी की जिंदगी काट रहे मगही कवि बालेश्वर।

मुफलिसों की जिंदगी का जिक्र क्या, मुफलिसी की मौत भी अच्छी नहीं…, रियाज खैराबादी की यह पंक्ति प्रख्यात मगही कवि भाई बालेश्वर पर सटीक बैठती है. मगही इंटर पाठ्यक्रम में पढ़ाई जा रही भाई बालेश्वर की कविता ‘हे भीष्म’ समाज की कुव्यवस्था पर आघात करती है, लेकिन रचनाकार फांकाकशी की जिंदगी काटने को विवश हैं.(maghi poet baleshwar)

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maghi poet baleshwar
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आर्थिक तंगी का आलम यह है कि उनकी सैकड़ों रचनाएं प्रकाशित नहीं हो सकीं.।

आर्थिक तंगी का आलम यह है कि उनकी सैकड़ों रचनाएं प्रकाशित नहीं हो सकीं. वहीं, दो दशक पहले ‘दुशासन का दलाल’ जैसे मगही काव्य संकलन से सुर्खियों में रहे कवि आज गुमनामी के अंधेरे में हैं. मगही कवि भाई बालेश्वर (70 वर्ष) मोकामा की ततवा टोली के निवासी हैं. विद्यार्थी जीवन से ही इन्होंने गलत परंपराओं के खिलाफ काव्य रचना शुरू की थी. वर्ष 1995 में इन्हें बिहार दलित साहित्य अकादमी ने साहित्य में योगदान के लिए प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया.(maghi poet baleshwar)

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वर्ष 2011 में मगध विश्वविद्यायल में इन्हें साहित्य, संस्कृति के उत्थान में योगदान के लिए सम्मानित किया।

वर्ष 2011 में मगध विश्वविद्यायल में इन्हें साहित्य, संस्कृति के उत्थान में योगदान के लिए सम्मानित किया . वहीं, वर्ष 2013 में इन्हें मगही अकादमी शिखर सम्मान की ख्याति भी मिली, लेकिन सरकार व सामाजिक स्तर पर सहयोग के अभाव में भाई बालेश्वर की रचना कुंठित होती चली गयी. हालांकि, वे आज भी खाली समय में मगही काव्य की रचना नहीं भूलते, लेकिन माली हालत खराब होने से निराशा का भाव मगही कवि के चेहरे पर साफ झलकती है. बेरोजगार तीन बेटे व उसके संतानों की जिम्मेदारी भाई बालेश्वर को झकझोर रही है.(maghi poet baleshwar)

 

मगही कवि बालेश्वर
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