कभी हाथीदह को शिक्षा के क्षेत्र का सिरमौर माना जाता था। शैक्षणिक और सांस्कृतिक गतिविधियों में सबसे अग्रिम पंक्ति में था यह प्राचीन ग्राम। यंहा के ग्रामीणों ने अपनी पीढ़ियों को विरासत में एक से बढ़कर एक विद्यालय दिए हैं।गंगा की कल कल बहती धारा के बीच यंहा शिक्षा और साहित्य की नदी भी बहती थी। अपने इसी विद्या ओर संस्कार के बल पर यंहा एक से बढ़कर एक लोग निकले जिन्होंने शिक्षा, साहित्य,स्वास्थ, इंजीनियरिंग, मैनजमेंट सहित अन्य विभागों में नेतृत्व किया और हाथीदह को गौरवान्वित किया।कभी पुस्तकालय , सांस्कृतिक कार्यक्रम और शिक्षा प्रेमियों का अखाड़ा हुआ करता था हाथीदह । समय क्रम में पुराना पुस्तकालय भवन तो इतिहास का हिस्सा बनकर रह गया।
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आज से करीब डेढ़ दशक पूर्व एक आशा फिर से जागी थी, 2006-2007 के वर्षो में तत्कालीन जदयू विधायक अनंत कु० सिंह के विधायक फंड से जिस हाथीदह डीह पुस्तकालय का निर्माण शुरू हुआ था, दुर्भाग्यपूर्ण रूप से आज तक पूरा न हो सका। बाटा मेकडॉवल के बंद होने से क्षेत्र के वर्तमान पर संकट तो है ही, मगर भविष्य के नींव को मजबूत करने में जिस पुस्तकालय का योगदान हो सकता था, उसकी यह दुर्गति विचार योग्य है।आज तकरीबन डेढ़ दशक के बाद भी यह हाथीदह डीह पुस्तकालय अपने उद्धार के लिए अपने जनप्रतिनिधियों की राह देख रहा है।
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