सात साथियों के शहादत के बाद भी रामकृष्ण सिंह ने सचिवालय पर झंडा फहराया था

सात साथियों के शहादत के बाद भी रामकृष्ण सिंह ने सचिवालय पर झंडा फहराया था(flag hoisted at the secretariat)

बिहार।पटना।आज सचिवालय पटना में साथ शहीद का स्मारक पटना के गौरव को बढ़ता है।बिहार के स्वतंत्रा सेनानिओं की क़ुरबानी की गाथा सुनाता है . 11 अगस्त, 1942 को जब कुछ युवक सचिवालय पर तिरंगा फहराने लेकिये आगे बढे तो किसी को ये अनुमान तक नही था की अंग्रेज इस आन्दोलन को दबाने के लिए अपने सबसे वीभत्स तरीके का इस्तेमाल करेंगे ।लोहे का विशाल फाटक बंद था। बगल वाले छोटे फाटक में भी ताला लगा दिया गया था। फाटक के अन्दर और बाहर बड़ी संख्या में लाठीधारी पुलिस के जवान तैनात थे। बाहर बड़ी संख्या में घुड़सवार पुलिस भी आदेश की प्रतीक्षा में खड़ी थी। भीतर का पूरा परिसर अंग्रेज और भारतीय अफसरों से भरा था। अंग्रेज अफसरों में मिस्टर डब्लू. जी. आर्चर (कलक्टर), मिस्टर क्रीड(डी.आई.जी.) और मिस्टर स्मिथ (सचिवालय सार्जेन्ट मेजर) ब्रिटिश हुकूमत की ‘नाक’ बचाने के लिए व्यूह-रचना करने में मशगूल थे।(flag hoisted at the secretariat)

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‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’, ‘झंडा ऊंचा रहे हमारा’, ….‘हम सचिवालय पर झंडा फहरायेंगे’।(Mokama Online)

उनके साथ भारतीय अफसर उदित नारायण पांडेय (एस.डी.ओ.), विश्वम्भर चौधरी (डिप्टी कलक्टर) और अली बशीर (डी.एस.पी.) भी थे। परिषद खंड के आगे बंदूकधारी गोरखा पुलिस की टुकड़ी सज-धजकर खड़ी थी। ‘अंग्रेजों भारत छोड़ो’, ‘झंडा ऊंचा रहे हमारा’, ….‘हम सचिवालय पर झंडा फहरायेंगे’ जुलूस आगे बढ़ा और ब्रिटिश हुकूमत एक्शन में आ गयी।जैसे ही युवकों का झुण्ड सचिवालय की तरफ बढ़ा,अंग्रजों ने ताबर तोड़ लाठी चार्ज शुरू कर दिया ।भारत माता की जय और वन्दे मातरम के नारे लगात्ते ये युवक हंसकर लाठी खाते आगे बढ़ते गये ।सचिवालय की खपरेल पर चढ़ते चढ़ते इनकी संख्या 200 से महज 10 रह गई।मगर ये आजादी के मतवाले रुकने वाले कन्हा थे. अंग्रेजो का झंडा उतार दिया गया।मगर जैसे ही इन्होने तिरंगा फहराना चाहा अंग्रेजो ने गोली बारी शुरू कर दी ।जिस नौजवान के हाथ में तिरंगा था उसे गोली मार दी ,इससे पहले वाज युवक निचे गिरता उसने तिरंगा अपने आगे वाले साथी को दे दी ,गोली चलती रही,एक पर एक लोग मरते रहे मगर तिरंगा आगे बढ़ता रहा ,वन्दे मातरम की आवाज़ में अंग्रेज थोरा उलझे तब तक किसी ने तिरंगा गाड़ दिया ,मगर तब तक उसके सात साथी शहीद हो गये ।उस युवक ने अपनी जान की तनिक भी परवाह न करते हुए सचिवालय के खपरेल पर तिरंगा फहरा कर अंग्रेजो को चकमा दे दिया।मगर अंग्रेजो ने सचिवालय को पूरी तरह घेर रख था ।पुरे सचिवालय की तलाशी हुई .एक माली को इतने गोली बाड़ी के बीच भी पौधे की निराई गुराई करते देख अंग्रेजो ने पकड़ लिया ।बाद में पता चला की वो माली कोई और नहीं बल्कि साथ शहीदों का आठवां साथी था जिसने अंग्रेजो के आँखों में धुल झोंकर सचिवालय पर तिरंगा फहरा दिया।सेना के कर्नल चिमनी (भारतीय) ने उस युवक से पूछा – ‘तुमने ऊपर झंडा फहराया?’ युवक ने पूरे जोश और साहस के साथ जवाब दिया – ‘जी हां, मैंने ही उसे फहराया है।’उस युवक का सिर मुड़ा हुआ था। वह एक धोती पहने और शरीर पर भी लपेटे हुए था।(flag hoisted at the secretariat)

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उस युवक ने अपना परिचय दिया – ‘नाम रामकृष्ण सिंह, घर मोकामा, पटना कॉलेज में आनर्स का विद्यार्थी।(Mokama Online)

उस युवक ने अपना परिचय दिया – ‘नाम रामकृष्ण सिंह, घर मोकामा, पटना कॉलेज में आनर्स का विद्यार्थी। उस युवक ने पूछताछ कर रहे भारतीय अफसरों को अंग्रेजी में धिक्कारना शुरू किया – ‘आप लोगों को शर्म नहीं आती कि विदेशियों की सेवा कर रहे हैं? उन विदेशियों को, जो सात समुंदर पार से आकर हमारे देश पर हुकूमत चला रहे हैं?’रामकृष्ण सिंह को कैम्प जेल भेज दिया गया ।इतिहास में इतना ही दर्ज है। फिर रामकृष्ण सिंह कहां गया? उसके साथ ब्रिटिश हुकूमत ने क्या सुलूक किया? इसके बारे में आजादी के 50 साल बाद भी किसी ने प्रामाणिक जानकारी नहीं दी।1.उमाकांत प्रसाद सिन्हा (रमन जी) – राम मोहन रॉय सेमिनरी, कक्षा 9, नरेंद्रपुर, सारण.२.रामानंद सिंह – राम मोहन रॉय सेमिनरी, कक्षा 9, साहदित नगर (वर्तमान धनवारुआ), पटना.3 .सतीश प्रसाद झा – पटना कॉलेजिएट स्कूल, कक्षा एक्स, खडहर, भागलपुर4.जगत्पति कुमार – बिहार नेशनल कॉलेज, द्वितीय वर्ष, खरती, औरंगाबाद.5.देविपदा चौधरी – मिलर हाई इंग्लिश स्कूल, कक्षा 9, सिलहट, जमालपुर 6.राजेंद्र सिंह – पटना उच्च अंग्रेजी स्कूल, मैट्रिक वर्ग, बनवारी चक, नयागांव, सारण (बिहार).7.रामगोविन्द सिंह – पुणुन उच्च अंग्रेजी स्कूल, मैट्रिक वर्ग IX, दसरथा, पटना ये सातों साथी इस कांड में शहीद हो गये।इन साथ सहिदों की बात तो अक्सर होती है मगर वो आठवां साथी आज भी गुमनाम ही रहा ।बिहार की नयी पीढ़ी तो क्या, पुरानी पीढ़ी को भी यह ठीक-ठीक मालूम नहीं और मालूम हो भी तो उसकी प्रामाणिकता संदेह से मुक्त नहीं कि सचिवालय पर किस क्रांतिकारी ने झंडा फहराया? स्कूल,-कालेज की किताबों में भी यह सवाल अनुत्तरित है। बिहार के अभिलेखागार और इतिहासकार भी इसके प्रति उदासीन हैं।(flag hoisted at the secretariat)

वह आठवां क्रांतिकारी कौन था, जिसने सचिवालय के गुंबद पर चढ़कर झंडा फहरा दिया?(Mokama Online)

हालांकि इतिहास में प्रामाणिक रूप से यह दर्ज है कि वे सात नौनिहाल तिरंगा फहराने के लिए सचिवालय गेट से आगे बढ़ने का प्रयास करते हुए शहीद हुए। तो वह आठवां क्रांतिकारी कौन था, जिसने सचिवालय के गुंबद पर चढ़कर झंडा फहरा दिया?अगस्त क्रांति के 56 साल बाद भी बिहार ने उस ‘युवक’ की सुध नहीं ली। उसने आजाद भारत में करीब 36 साल जिन्दा रहकर भी कभी किसी के सामने खुलकर यह कहना उचित नहीं समझा कि उसने ही सचिवालय पर झंडा फहराया। वह हर साल सचिवालय के शहीद स्थल पर माथा टेकता। अपने संगी-साथी शहीदों की याद करता। संभवतः मन ही मन कहता – ‘तुम शहीद होकर मौन हो गये। मैं तुम्हारा साथी हूं। इसलिए मैं जिंदा रहकर भी मौन साधूंगा’(स्रोत-सन्दर्भ : 8 अगस्त, 1998 में प्रकाशित आलेख ‘शहीद स्मारक’)।(flag hoisted at the secretariat)

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