हम अकसर सुनते हैं की जब जब दंगे होते हैं तो निर्दोष ही मरते हैं चाहे वो हिन्दू हों या मुसलमान . इस देश में हजारों बार दंगे हुए हर बार निर्दोष लोग ही मारे जाते रहे हैं .पर आज आपको दंगेके बिच में जाकर दंगे रोकने के प्रयास में जान गवाने वाले एक नेता की कहानी सुनाता हूँ.
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आजादी की लड़ाई चल रही थी .देश में एक ओर गाँधी जी तो दूसरी ओर सुभास चन्द्र बोस,भगत सिंह जैसे क्रांतिकारी अंग्रेजों से लोहा ले रहे थे.गाँधी जी सहित अन्य कोंग्रेसी नेताओं ने सत्य और अहिंसा का रास्ता चुना था जबकि दूसरी और क्रांतिकारियों ने अंग्रेजो से युद्ध छेड़ रखा था.दो तरफा घिरे अंग्रेज धीरे धीरे बढ़ते जन विरोध को दबाने में नाकामयाब होने लगे थे .क्योंकि गाँधी जी के नेत्रित्व में अंग्रेजों का बहिष्कार हो रहा था जबकि क्रांतिकारियों का गुट उनपर सीधे हमले करने कर रहे थे .हारते अंग्रेजों ने अपनी कुटिल रणनीति के तहत भारत में हिन्दू मुसलमान के दंगे करवा दिए .अभी तक जो सब मिलकर अंग्रेजों से लड़ रहे थे अब आपस में लड़ने लगे.सेकड़ों लोग रोजाना कत्ल होने लगे . गाँधी जी जैसे नेता दिन रात दंगे बंद करने की अपील करते रहे पर दंगे दिनों दिन बढ़ते ही जा रहे थे.अंग्रेज अपनी चाल में सफल हो रहे थे.अंग्रेज फुट डालो और राज करो की निति पर चलने लगे .बंग भंग कर दिया गया . बंगाल विभाजन के बाद अंग्रेजों ने धार्मिक भावनाओं को खूब भडकाया और लोग दंगे की आग में उलझते चले गये.देश भर में साम्प्रदायिक दंगे जोड़ पकड़ने लगे .आगजनी,लूटपाट और हत्या की घटना से अखबार रंगे रहने लगे .
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येसा ही एक दंगा सन 1931 में कनपुर में भी भड़का .मात्र 2 दिनों में ही कानपुर में सेकड़ों निर्दोष लोगों की जान चली गई .धर्म के नाम पर लोग एक दुसरे को जिन्दा दफन करने पर तुले थे .दिनों दिन दंगे बढ़ते जा रहे थे.कांग्रेस के एक बड़े नेता और पत्रकार रोजाना खबर में लिखते थे, अपने पत्र “प्रताप “से वो लोगों को अंग्रेजो की कुटिल चाल के बारे में बताते थे की आपस में लड़ना छोड़े और अंग्रेजों से लड़ें.पर दंगे कम नहीं हो रहे थे, उनसे रहा न गया और वो निकल पड़े दंगे रोकने एक दिन वो दंगे बंद करवाने दंगाइयों के बीच पहुँच गये .हाथ जोड़कर वो विनती करने लगे पर कंही कंही तो जो लोग उन्हें पहचानते थे उन्होंने दंगे बंद कर दिए .बहुत जगहों पर वो दंगे बंद करवाने में सफल रहे .पर एक दंगाइयों की टुकड़ी ने उनकी एक न सुनी और उन्हें ही कत्ल कर दिया .
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इनके घर वाले और प्रेस वाले इन्हें खोजत रहे ,कुछ दिन बाद इनकी लाश एक अस्पताल में कटी फटी और फूली अवस्था में मिली .प्रताप अखबार निकालने वाला “प्रताप बाबा” के नाम से पुरे देश में जाने जाना वाला वो कांग्रेस का नेता जो दंगे बंद करवाने निकला था दंगाइयों ने उसके ही प्राण ले लिए .
ये कोई और नहीं बल्कि आजादी के सिपाही गणेश शंकर विद्यार्थी थे .आजादी की लड़ाई में वो कई बार जेल अगये पर जब भी जेल से बाहर आते वो फिर अंग्रेजों के खिलाफ बगावत करते और अंग्रेज उन्हें फिर जेल में डाल देते.इनके मौत प. नेहरु ने कहा था की “इनके बाद शायद ही कोई नेता दंगाइयों के बीच जाकर उनसे दंगे बंद करने के लिए कहेगा” आज उनकी बात शत प्रतिशत सही निकल रही है,जब भी दंगे फैलते है तो वर्तमान नेता दंगे बंद करवाने नहीं दंगे बढाने के लिए ही जाने जाते हैं.
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आज के दिन ही उन्हें कानपुर में दंगाइयों ने कत्ल कर दिया था.मोकामा ऑनलाइन येसे समर्पित आजादी के सिपाही,नेता ,पत्रकार गणेश शंकर विद्यार्थी को उनके पुण्यतिथि पर विनम्र श्रद्धांजलि अर्पण करता है.
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