पेड़ कटा देखा तो दिनकर ने लिखी कविता।
मोकामा।(Dinkar Ki kavita Mokama) राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की स्कूली शिक्षा मोकामा में हुई थी। 16 जनवरी 1924 को रामधारी सिंह का जेम्स वॉकर हाई इंग्लिश स्कूल मोकामा घाट में 9वीं कक्षा में दाखिला हुआ। राय साहब रामशरण सिंह द्वारा स्थापित और 10 अगस्त 1910 से संचालित मोकामा घाट का यह हाई स्कूल उस दौर के सर्वाधिक प्रतिष्ठित विद्यालयों में एक था। यहां ज्यादातर अंग्रेजों के बच्चे पढ़ते थे। कठिन प्रवेश परीक्षा के उपरांत गिने चुने मेधावी भारतीय छात्रों का दाखिला होता था।(Dinkar Ki kavita Mokama)
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मोकामा घाट में बालक रामधारी सिंह के सहपाठी हुए मदन सिंह।(Mokama Online)
मोकामा घाट में बालक रामधारी सिंह के सहपाठी हुए मदन सिंह। मोकामा के सुल्तानपुर निवासी मदन सिंह से उनकी ऐसी दोस्ती हुई कि दिनकर ताउम्र जब भी सड़क के रास्ते पटना से मोकामा-सिमरिया आते जाते तो सुल्तानपुर में अनिवार्य रूप से रुकते। दिनकर की कई कविताओं की प्रूफ रीडिंग मदन सिंह ने की। कहते हैं जब मदन सिंह ने मोकामा में प्रिंटिंग प्रेस खोला तब उसका नामकरण ‘नटराज’ भी दिनकर ने किया।(Dinkar Ki kavita Mokama)

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स्कूली जीवन के वर्षों बाद दिनकर की एक और लोकप्रिय कविता की सृजन भूमि मोकामा रही जिसका किस्सा रोचक रहा।(Mokama Online)
(Dinkar Ki kavita Mokama)स्कूली जीवन के वर्षों बाद दिनकर की एक और लोकप्रिय कविता की सृजन भूमि मोकामा रही जिसका किस्सा रोचक रहा। मोकामा में उन दिनों दिनकर अक्सर सुल्तानपुर में मदन बाबू और साधुबाबू के ‘दालान’ पर बैठते थे। दालान के पास कई पेड़ थे जिनमें से एक जामुन पेड़ को एक दिन काट दिया गया। वहां उसके बदले लोहे का खंभा गड़ दिया गया। आधुनिक भारत में यह विद्युतीकरण और मशीनीकरण का शुरुआती दौर था। दिनकर ने जब अपने सामने पेड़ कटा पाया और लोहे के खंभे गड़े देखे तब उन्होंने उसी दालान पर बैठे बैठे कुछ समय में ही एक कविता लिख दी –
लोहे के पेड़ हरे होंगे,
तू गान प्रेम का गाता चल,
नम होगी यह मिट्टी ज़रूर,
आँसू के कण बरसाता चल।(Dinkar Ki kavita Mokama)


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