एक युवक जिसने अपने प्राणदीप भारत माता के चरणों को अर्पित कर दिया ।
एक युवक जिसने अपने लहू से मोकामा की पावन धरती पर क्रांति लिख गया ।
एक युवक जिसकी शहादत ने मोकामा की राजनीतिक इतिहास को गरिमा प्रदान कर गया ।
एक युवक जिसके आत्मोत्सर्ग के पश्चात भारतवर्ष में क्रांतिवाद का जन्म होता है ।
एक युवक जिसके बलिदान से मोकामा का नाम संपूर्ण भारतवर्ष में चर्चित हो गया ।
द्वितीय स्वतंत्रता -संग्राम के प्रथम शहीद होने का गौरव प्राप्त वह युवक था -“अमर शहीद प्रफुल्लचंद्र चाकी |” 2 मई, 1908 ई० को उनके बलिदान से मोकामा में स्वतंत्रता की रणभेरी बज उठती है । इस रणभेरी की अनुगुंज ने समस्त भारतवर्ष को आंदोलित कर दिया था।हमारे पूर्वजों के द्वारा इस अमर शहीद के स्मार्तस्वरूप एक शहीद द्वार का निर्माण कराया गया था ।
आज उनके जन्मदिन की संध्या पर डॉ आशुतोष आर्य,डॉ सच्चिदानंद सिंह,डॉ सुधांशु शेखर,डॉ प्रेम रंजन,ललन कुमार,निरंजन कुमार वार्ड कमिश्नर,विनय सर ,चन्दन कुमार और भी बुधिजिवी लोग शहीद गेट पर जमा हुए और प्रफुल्ला चाकी को याद किया.मोमबतियां जला कर अमर शहीद को याद किया गया.
भारत माँ के इस लाडले के जन्मदिन पर हर साल शहीद गेट पर उन्हें याद किया जाता है.
शहीदों के चिताओं पर लगेंगे हर वरस मेले .
वतन पर मरने वालों का यही बाकि निशा होगा.
भारत माँ का नहीं रहा कोई कर्ज बाकी ।
देखो शहीद हो गया प्रफुल्लचंद्र चाकी ॥
अपने लहू से उसने क्रांति मशाल को जलाया था ,
हम भी दिल में उनकी स्मृति-ज्वाला को जलाए हुए हैं ।
एक कर्ज दे गया है वह , शीश अपना देकर ।
ऋणमुक्त होंगे हम उनकी मूर्ति स्थापित कर ॥