जयंती पर याद किए गए प्रफुल्ल चंद्र चाकी,प्रफुल्ल चंद्र चाकी अमर रहे के नारों से गूंज उठा मोकामा।

जयंती पर याद किए गए प्रफुल्ल चंद्र चाकी,प्रफुल्ल चंद्र चाकी अमर रहे के नारों से गूंज उठा मोकामा।

बिहार ।पटना।मोकामा।देश को अंग्रेजों से मुक्त कराने में अपना सर्वोच्च कुर्बान करने वाले प्रफुल्ल चंद्र चाकी की आज जयंती है।  मोकामा में उनके सम्मान में बने शहीद द्वार पर लोगों ने दिया जलाकर उन्हें याद किया।(226 Mokama Online News)

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10 दिसम्बर 1888 को बिहारी ग्राम जिला बोगरा (अब बांग्लादेश ) में जन्मे प्रफुल्ल चंद्र चाकी को बचपन से ही अपनी मातृभूमि से लगाव था ।

10 दिसम्बर 1888 को बिहारी ग्राम जिला बोगरा (अब बांग्लादेश ) में जन्मे प्रफुल्ल चंद्र चाकी को बचपन से ही अपनी मातृभूमि से लगाव था ।बचपन से ही उग्र सवभाव था  ,देश की गुलामी उन्हें हमेशा ही खलती रहती थी ।वो देश को आज़ाद करने के लिए तरह तरह के विचार दिया करते थे । जब वो मात्र 20 वर्ष के थे तब ही उन्होंने अंग्रेजो से लोहा लेना शुरू कर दिया था ।अपने छात्र जीवन से ही चाकी ने अंग्रेजों से बगावत शुरू कर दिया । 1905 के बंगाल विभाजन और 1907 में नया कानून बनाकर अंग्रेजों द्वारा लोगों को प्रताड़ित करते देख खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चंद चाकी  ने हुकूमत से बदला लेने का मन बनाया। किंग्सफोर्ड ऐसे ही जज थे, जिन्होंने कई क्रांतिकारियों को मौत की सजा सुनायी थी। यही कारण रहा कि बंगाल से मुजफ्फरपुर किंग्सफोर्ड के तबादले के बावजूद खुदीराम बोस और चाकी ने बदला लेने का विचार नहीं त्यागा।

30 अप्रैल 1908 को खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चाकी ने किंग्सफोर्ड की हत्या के लिए मुजफ्फरपुर में कंपनीबाग रोड स्थित क्लब के समीप बम फेंका।

30 अप्रैल 1908 को खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चाकी ने किंग्सफोर्ड की हत्या के लिए मुजफ्फरपुर में कंपनीबाग रोड स्थित क्लब के समीप बम फेंका। फोर्ड बच गये, चूंकि वे गाड़ी में थे ही नहीं, लेकिन इस घटना में दो महिलाओं की मौत हुई. जब प्रफुल्ला और खुदीराम को ये बात पता चली की किंग्स्फोर्ड बच गया और उसकी जगह गलती से दो महिलाएं मारी गई तो वो दोनों थोरे से निराश हुए वो दोनों ने अलग अलग भागने का विचार किया और भाग गए।मुजफ्फरपुर(बिहार) में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ यह पहला बम विस्फोट था खुदीराम बोस तो मुज्जफर पुर में पकरे गए और उन्हें इसी मामले में को 11 अगस्त 1908 को फांसी हुई पर प्रफुल्ला चाकी जब रेलगाड़ी से भाग रहे थे तो समस्तीपुर में एक पुलिस वाले को उनपर शक हो गया ।वो उसने इसकी सूचना आगे दे दी जब इसका अहसाह प्रफुल्ल चंद्र चाकी को  हुआ तो वो मोकामा रेलवे स्टेशन पर उतर गए पर पुलिस ने पुरे मोकामा स्टेशन को घेर लिया था और आज़ादी का ये वीर  सपूत अपने बलिदान से मोकामा की वो धरती को अमर बना गया ।अपने माँ –बाप की इकलौती संतान होने के बाबजूद उन्होंने देश की खातिर अपने आप को कुर्बान कर दिया।(226 Mokama Online News)

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आज़ादी के इस दीवाने का जितना तिरस्कार हो रहा है वो बर्दास्त के काबिल नहीं है।

मगर आज़ादी के इस दीवाने का जितना तिरस्कार हो रहा है वो बर्दास्त के काबिल नहीं है। वर्षों पहले  उनके नाम से एक शहीद  द्वार तो बना पर वो आज इतना जर्जर है की वो कब गिर जाये कुछ कहा नहीं जा सकता ।

मोमबतियां जला कर अमर शहीद को याद किया गया।

आज उनके जन्मदिन की संध्या पर डॉ आशुतोष आर्य, डॉ सुधांशु शेखर,वैकुंठ नारायण झा,मनीष कुमार,आशिक कुमार सिंह, घोसवरी भाजपा अध्यक्ष आकाश कुमार सहित कई बुद्धिजीवी समाज के लोग शहीद गेट पर जमा हुए और प्रफुल्ल चंद्र चाकी को याद किया।मोमबतियां जला कर अमर शहीद को याद किया गया।

डॉ आशुतोष कुमार आर्य ने उनको एक कविता समर्पित की।।

भारत माँ के इस लाडले के जन्मदिन पर हर साल शहीद गेट पर उन्हें याद किया जाता है। डॉ आशुतोष कुमार आर्य ने उनको एक कविता समर्पित की।

भारत माँ का नहीं रहा कोई कर्ज बाकी ।
देखो शहीद हो गया प्रफुल्लचंद्र चाकी ॥
अपने लहू से उसने क्रांति मशाल को जलाया था ,
हम भी दिल में उनकी स्मृति-ज्वाला को जलाए हुए हैं ।
एक कर्ज दे गया है वह , शीश अपना देकर ।
ऋणमुक्त होंगे हम उनकी मूर्ति स्थापित कर ॥

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