शहिद को सम्मान कब? प्रफुल्ल चाकी की शहादत क्यों भूल गया मोकामा।

शहिद को सम्मान कब? प्रफुल्ल चाकी की शहादत क्यों भूल गया मोकामा।

बिहार।पटना।मोकामा।आखिर मोकामा अपने उस बेटे की कुर्बानी क्यों भूल गया जिसने अपने रक्त की एक एक बूंद से मोकामा की मिट्टी को अमर कर दिया।आजादी के 70 साल बाद भी स्वंत्रता के उस शहीद को सम्मान क्यों नसीब नहीं हो रहा ।10 दिसंबर, 1888 को जन्मे प्रफुल्ल चाकी अपने शहादत के समय मात्र19 वर्ष के थे। मोकामा की जिस मिट्टी पर उन्होंने अपनी सर्वोच्च कुर्बानी दी वहां चाकी की एक तस्वीर तक नहीं है । आखिर वहां चाकी का स्मारक बनाने की अनुमति अब तक क्यों नहीं दी जा सकी? अगर प्रफुल चाकी की मूर्ति स्टेशन परिसर में स्थापित होती है तो इससे रेलवे स्टेशन और मोकामा शहर, दोनों का मान जरूर बढ़ेगा।(180 Mokama Online News)

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चाकी ने अपनी पिस्तौल से खुद को गोली मार ली और शहिद हो गए।

एक मई, 1908 को प्रफुल्ल चंद्र चाकी ने अपनी पिस्तौल से खुद को गोली मार ली और शहिद हो गए।बंगाल का विभाजन के बाद तरुण प्रफुल्ल चाकी पर गहरा प्रभाव हुआ वह बंगाल विभाजन के विरोध में उठ खड़े हुए। स्वतंत्रा आंदोलन में हिस्सा लेने लगे इस वजह से उन्हें स्कूल से बाहर निकाल दिया गया था। फिर वह देश की स्वतंत्रता के लिए लड़ रहे क्रांतिकारियों के संपर्क में आए।आजादी की चाह दिल में लिए चाकी किंग्सफोर्ड पर हमले की प्लानिंग करने लगे। इस क्रांतिकारी कार्य में उन्हें खुदीराम बोस का साथ मिला था।(180 Mokama Online News)

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किंग्सफोर्ड पर हमला हुआ जिसमे किंग्सफोर्ड बाल बाल बच गया मगर एक अंग्रेज महिला की मौत हो गई।

मुजफ्फरपुर में किंग्सफोर्ड पर हमला हुआ जिसमे किंग्सफोर्ड बाल बाल बच गया मगर एक अंग्रेज महिला की मौत हो गई। भागने के क्रम में खुदीराम बोस पकड़े गए और उन्हें फांसी दी गई। चाकी भागते भागते मोकामा आ पहुंचे और स्टेशन परिसर में ही अंग्रेज सिपाहियो ने उन्हें घेर लिया। पहले तो चाकी अंग्रेजो से लड़ते रहे ,जब आखिरी गोली बची तो उसे चूम कर खुद को मार लिया। इस तरह देश के लिए चाकी ने अपने प्राणों की आहुति दे दी और अमर हो गए।(180 Mokama Online News)

समय बीतता गया, मोकामा धीरे धीरे चाकी को भूलता गया।

समय बीतता गया, मोकामा धीरे धीरे चाकी को भूलता गया। आज मोकामा के पूर्वी रेलवे फाटक पर उनकी याद में एक शहीद द्वार जरूर बना हुआ है।कुछ साल पहले शहीद प्रफुल्ल चंद्र चाकी स्मारक समिति भी बनी। स्व. उदय प्रकाश नेता जी ने कोशिश की और दिल्ली के गांधी शांति प्रतिष्ठान में एक श्रद्धांजलि सभा आयोजित की।बाद के वर्षों में चाकी पर एक डाक टिकट भी जारी किया गया।लेकिन लोग चाकी को धीरे धीरे भूलते गए। आज का युवा चाकी का नाम तक नहीं जानता।चाकी एक अनजान स्वतंत्रता सेनानी हैं जिनकी शहादत को मोकामा भूल चुका है।

स्टेशन परिसर में इनकी प्रतिमा को स्थापित करना चाहिए

रौशन भारद्वाज ने अपने पहल से प्रफुल्ल चंद्र चाकी की एक प्रतिमा का निर्माण भी करवाया है। स्टेशन परिसर में इस प्रतिमा को स्थापित करना चाहिए ताकि आने वाली पीढ़ियां चाकी को याद रख सके।अब सरकार और रेलवे प्रशासन कब अनुमति देता है शहीद को सम्मान देने के लिए यह बड़ा मुद्दा है।

मोकामा के आम जन मानस को शहीद प्रफुल्ल चंद्र चाकी के सम्मान हेतु आगे आना चाहिए।हम सब मोकामा वासियों को मिलकर सरकार और रेलवे प्रशासन से मांग करनी चाहिए की जल्द से जल्द अनुमति दी जाए ताकि चाकी की प्रतिमा स्थापित हो सके।

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