डीएम ने फिश फार्मिंग का किया निरीक्षण।
डीएम कुमार रवि ने #मोकामा में दो जगहों पर फिश फार्मिंग का निरीक्षण किया। इस दौरान डीएम ने जल-जीवन-हरियाली मिशन को लेकर भी समीक्षा की। डीएम कुमार रवि अपनी टीम के साथ मोकामा पहुंचे। उन्होंने मोकामा बाईपास किनारे किसान नेता चंदन कुमार की फिश फार्मिंग का जायजा लिया। वहां पर परंपरागत तरीके से फिश फार्मिंग की जा रही है। फिश फार्मिंग के अलावा वहां सघन वृक्षारोपण तथा मुर्गी पालन की परियोजना भी एक साथ ही शुरू की गई है। इसके अलावा उन्होंने मोलदियार टोला निवासी मटोल सिंह और संदीप सिंह के बायो फ्लॉक सिस्टम पर आधारित फिश फार्मिंग का भी निरीक्षण किया। उन्होंने इजरायली तकनीक से हो रहे मत्स्यपालन की जानकारी ली। डीएम के साथ डीडीसी सुहर्ष भगत, एसडीएम सुमित कुमार, बीडीओ सुशील कुमार, सीओ रामप्रवेश राम सहित अन्य मौजूद थे। अधिकारियों के दौरे को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के जल-जीवन-हरियाली मिशन से जुड़ी यात्रा की तैयारियों से जोड़कर देखा जा रहा है। (दैनिक भास्कर) ... See MoreSee Less
#गंगा
मोकामा के लिए कैसे वरदान बन सकता है नीतीश जी का गंगा का पानी मोकामा से राजगीर-गया ले जाना
राजनैतिक और सामाजिक कारकों से पिछले चार दशक से बिहार में औïद्योगिक विकास की रफ्तार भोतरी हो गई। कारण कई रहे। उस पर बिहार विभाजन के बाद झारखंड बनने से बिहार के हिस्से में मूल रूप से कृषि और जल ही उसकी अमूल्य निधि बची है। ऐसे में बेहद जरूरी है कि हमारी सरकारें कृषि और जल का समुचित प्रबंधन करे जिससे यह हमारे सामाजिक और आर्थिक विकास का मार्ग प्रशस्त करे।
हालांकि बिहार की प्राकृतिक भू-संरचना ऐसी है कि गंगा के उत्तर का इलाका मानसून में हर बरस डूबता ही है और दक्षिण के दर्जनों जिलों में सूखे सी नौबत रहती है। बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में अब तक जल प्रबंधन के किए गए सारे उपाय लगभग असफल रहे हैं। और सूखा प्रभावित दक्षिणी बिहार में जल प्रबंधन की कोई बृहद परियोजना अब तक साकार ही नहीं हुई है।
वहीं, उत्तर प्रदेश में गंगा से करीब 80 छोटी बड़ी नहरें निकली हैं। इससे उत्तर प्रदेश गंगा नदी जल का उपयोग कर बड़े भूभाग को सिंचाई युक्त बना चुका है। यह उत्तर प्रदेश के किसानों को बड़ी राहत दे रहा है जबकि बिहार में ऐसी एक भी परियोजना नहीं है।
तो कृषि को कुबेर का खजाना तभी बनाया जा सकता है जबकि दक्षिण बिहार के खेतों तक पानी पहुंचे। इसलिए दशकों पूर्व गंगा के पानी को गया तक ले जाने की परिकल्पना की गई। लेकिन लंबे इंतजार के बाद भी इसे साकार नहीं किया जा सका। या कहा जाए तो इस दिशा में कोई प्रयास ही नहीं हुआ। अंतत: इसी वर्ष 15 अक्टूबर को पहली बार इस परियोजना की एक विस्तृत रूपरेखा पेश की गई।
गंगा को गया से जोडऩे के लिए हाथीदह से पाइप लाइन से पानी ले जाना है। इसके तहत 190 किलोमीटर पाइपलाइन बिछानी होगी जो हाथीदह के आगे बाइपास के बाद मोकामा-सरमेरा-बरबीघा सडक़ से गिरियक और फिर वहां से दो पाइप लाइन में एक नवादा और दूसरा गया के मानपुर तक पहुंचेगी। अंतत: गया में फल्गू नदी में गंगा का पानी गिरेगा।
हाथीदह से जो पानी जाएगा उसे रास्ते में गिरियक के पास डैम बनाकर संचयन किया जाएगा। इस तरह रास्ते में कुछ और जगहों पर छोटे बड़े डैम या चेकडैम बनेंगे जिसके बाद पानी को पेयजल और सिंचाई के उपयोग में लाया जाएगा। जैसा कि अनुमान है कि अगर योजना सौ फीसदी सफल रही तो बिहार की कृषि और पर्यटन दोनों के लिए यह वरदान साबित होगी।
लेकिन मूल सवाल यही है कि गंगा का पानी आखिर हाथीदह से ही क्यों ले जाया जाए? तो पहली बात सर्वाधिक पानी मानसून के दिनों में ले जाने की योजना है। यानी जिस समय गंगा में अधिकतम पानी रहता है। योजना के तहत जो तीन जलाशय बनेंगे उनकी कुल क्षमता 270 मिलियन क्यूसेक मीटर है। यानी गंगा से अगर इतनी मात्रा में पानी ले जाया जाए तो यह वैसा ही होगा जैसे एक ट्रक बालू से एक मुट्ठी बालू ले लेना।
खैर सवाल तो यही है कि राज्य सरकार की महत्वाकांक्षी गंगाजल उद्भव योजना के तहत मोकामा से गंगाजल को नालंदा क्यों जाए? कायदे से इसके पीछे भी मोकामा की भौगोलिक स्थिति एक बड़ा कारण है। गंगा जब इलाहाबाद से चलती है तब गंगा के पानी बक्सर या पटना पहुंचने में अधिकतम 48 घंटे का समय लगता है जबकि पटना से फरक्का पहुंचने में नौ से बारह दिनों का समय लगता है। इलाहाबाद से पटना और पटना से फरक्का की दूरी करीब 500 किमी ही है लेकिन पानी की रफ्तार में इतना बड़ा बदलाव आ जाता है।
वहीं, इलाहाबाद से भागलपुर तक अगर गंगा नदी को देखें तो गंगा सर्वाधिक गहराई, अधिकतम जल घनत्व और सबसे छोटे पाट में हाथीदह के पास बहती है। हाथीदह के पूर्व तक हर जगह गंगा दो से तीन पाटों और उथली सतह के रूप में बहती है। तो स्वाभाविक जहां जल घनत्व सर्वाधिक होगा वहीं से पानी खींचना सबसे सरल होगा।
मोकामा क्षेत्र का यही सकारात्मक भौगोलिक पक्ष है जिस कारण मुगल और अंग्रेजों के समय मोकामा घाट से नौवहन होता था और बाद में राजेंद्र पुल निर्माण के लिए बंगाल की तमाम कोशिशों को उस समय चीफ इंजीनियर सर एम. विश्वेशवरैया ने नजरअंदाज कर मोकामा को सबसे उपयुक्त पुल निर्माण स्थल बताया था। आज भी स्थिति कुछ वैसी ही बन रही है। आज भी गंगाजल उद्भव योजना में मोकामा उसी भौगोलिक कारण से फिर से सबसे उपयुक्त जल दोहण स्थल माना जा रहा है।
पर मोकामा की उन चिंताओं पर गौर करना जरुरी है कि आखिर इससे मोकामा क्षेत्र पर क्या दुष्प्रभाव पड़ेगा। अगर सर्वाधिक पानी का खिंचाव मानसून में होगा तो उससे स्थानीय भूक्षेत्र में बैकवॉटर फैलने का खतरा कम रहेगा, क्योंकि जो 270 मिलियन क्यूसेक मीटर का भंडारण होगा उसका सबसे अधिक पानी मानसून के चार पांच महीने में ही जाना है। बाद में जलाशयों में भंडारित पानी को आगे बढ़ाया जाएगा। इसी प्रकार इस परियोजना से हाथीदह क्षेत्र में किसी के विस्थापन की समस्या नहीं आनी चाहिए और ना ही कृषि योग्य भूमि के रास्ते पाइपलाइन जाएगी।
अगर सरकार चाहे तो इसी परियोजना को विस्तार देते हुए मोकामा टाल से बहने वाली हरोहर नदी में भी गर्मी के दिनों में कुछ पानी छोड़ सकती है इससे टाल के दोफसला होने का रास्ता साफ हो सकता है। अभी टाल के बलगुदर में सुलिस गेट निर्माण चल रहा है जिसके बाद पानी संचयन और प्रबंधन में आसानी हो सकती है। वैसे में अगर गंगाजल उद्भव योजना से हम अपने क्षेत्र को भी जोडऩे की बात करें यह हमारे लिए टाल को सोने की चिडिय़ा बनाने वाला कदम हो सकता है। नालंदा, नवादा, राजगीर, गया के लिए तो मानसून में सबसे ज्यादा पानी ज्यादा लेकिन बाद के समय में जब गंगा का जलस्तर कम रहेगा उस समय अगर हमारे टाल में पानी पहुंचाया जाए तो हमारे खेत सालों भर हरियाली युक्त रह सकते हैं। हालांकि इसके लिए हमारे जनप्रतिनिधियों को गंभीरता दिखानी होगी। जब उत्तर प्रदेश में ऐसी ही गंगा नहर परियोजनाओं से खेती की सूरत संवर सकती है तब हम क्यों नहीं मोकामा में भी इसके सदुपयोग की बात करें।
सकारात्मक ढूंढेंगे तो इस परियोजना से दक्षिण बिहार में हर प्रकार की जल जरुरतों को पूरा किया जा सकता है। चाहे पेयजल हो या सिंचाई या फिर सूखी फल्गू और राजगीर के कुंडों को भरने का काम। या फिर हमारे मोकामा-बड़हिया टाल को दो फसला करने की जरुरत--- सब इस परियोजना से संभव है जरुरत मजबूत इच्छाशक्ति की है।
बाकी परियोजना को फिलहाल पर्यावरण मंजूरी से लेकर संभव है कोई कोर्ट कचहरी के चक्कर भी लगवा दे। हां हम अगर अपनी खेती को संवारना चाहते हैं तो अपने जन प्रतिनिधियों पर दबाव बनाएं कि वे इसका लाभ हमार टाल को भी दिलाएं।
बंकिये आज तक हम मुख्यमंत्रियों का विरोध कर करके अपना सबकुछ गंवा ही चुके हैं। हम उनका कुछ नहीं बिगाड़ पाए अपना सबकुछ लुटा दिए। अब भी नहीं संभले तो उनकी परियोजना तो साकार होगी ही हम और रसातल में जाएंगे। इसलिए इससे अपने लाभ की जरूरतों पर ध्यान दें, यही ज्यादा सही होगा।
इति...
Neeraj Singh Pranav Shekher Shahi Lalan Singh Surajbhan Singh Veena Devi ... See MoreSee Less
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अभयानंद सुपर 30 की ओर से आज श्रीकृष्ण मारवाड़ी उच्च विद्यालय में प्रवेश परीक्षा का आयोजन किया गया।
600 से ज्यादा विद्यार्थियों ने इसमें हिस्सा लिया।
इसमें चयनित होने वाले विद्यार्थियों को निशुल्क IIT और Medical की तैयारी के लिये कोचिंग की सुविधा दी जाएगी।
आज इस प्रवेश परीक्षा को सफल बनाने में आनंद मुरारी जी, MBTC के शिक्षक चंदन जी,LIC of India के मनोज जी, ज्ञानप्रभा कोचिंग संस्थान के शिक्षक पारस जी ने अहम भूमिका अदा की। ... See MoreSee Less
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